Wednesday 11 February 2015

शिवरात्रि पूजन पर रखे 11 चीज़ो का विशेष ध्यान

किसी भी पूजा पाठ अनुष्ठान में प्रतेक व्यक्ति को स्नान करके शुद्ध और पवित्र तो होना ही पड़ता है। पूजा कराने वाले व्यक्ति के वस्त्र संभव हो तो बिना सिले हो तो बहुत अच्छा है। पूजा का आसन ऊनि और स्वस्छ होना चाहिए। संकल्प लेके ही पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा शिवपूजन में इन 11 बातो का ध्यान रखना चाहिए। 

  
(१)  भस्म,त्रिपुण्ड और रुद्राक्ष माला ये शिव पूजन में विशेष जरूरी है। जो उपाशक के शरीर पर विशेष जरूरी है। 
 
(२)  शिव की पूजा में काले तिल और चम्पा के फूलो  का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
 
(३)  भगवान शिव की पूजा में दूर्वा और तुलसी दल चढ़ाया जाता है। तुलसी की मंजरियों से पूजा श्रेष्ठ मानी जाती है। 
 
(४)  शंकर जी के लिए विशेष पत्र और पुष्प में , बिल्व -पत्र प्रधान है , किन्तु बिल्व पत्र में चक्र और वज्र नही होना चाहिए। बिल्व - पत्र में किर्डो के द्वारा बनाया हुआ जो (चक्र) सफेद चिन्ह होता है उसे चक्र कहते है  और बिल्व पत्र के डण्ठल की और जो थोड़ा सा मोटा भाग होता है वह वज्र कहा जाता है । वह भाग तोड़ देना चाहिए । कीड़ों से खाया हुआ कटा फटा बिल्व पत्र भी शिव पूजा योग्य नही होता । बिल्व - पत्र चढ़ाते समय बिल्व पत्र में तीन से लेकर ग्यारह दलों तक के  बिल्व प्राप्त होते है ये जितने अधिक पत्रो के  हो, उतने ही उत्तम माने जाते है, यदि तीन ,में से कोई दाल टूट गया हो तो वह बिल्व पत्र चढ़ाने योग्य नही है । आक का फूल और धतूरे का फूल भी शिव पूजा की विशेष सामग्री है, किन्तु सर्वश्रेस्ठ पुष्प है ' निल कमल' का । उसके अभाव में कोई भी कमल का पुष्प होना चाहिए । कमल का पुष्प भगवान शंकर को बहुत प्रिय है । कुमुदिनी -पुष्प अथवा कमलिनी पुष्प का प्रयोग भी शिव पूजा में होता है । 
 
(५ )   तुलसी और बिल्व पत्र सर्वदा शुद्ध माने जाते है ये बासी नही होते । आवला , कमल पुष्प , अगसतय पुष्प ये भी पहले दिन तोड़कर लए हुए दूसरे दिन उपयोग में आते है । एक दीन में इसे बसी नहीं माना जाता । 
 
(६) भगवन शंकर के पूजन के समय करताल नही बजाया जाता । 
 
(७) शिव की परिक्रमा में सम्पूर्ण परिक्रमा नही की जाती । जिधर से चढ़ा हुआ जल निकलता है, उस नाली का उलंघन नही किया जाना चाहिए। वहा से प्रदिक्षणा उलटी की जाती है । 
 
(८) शिवजी की पूजा में कुटज, नागकेसर, बंधूक, (दुपहरिका ) मालती, चम्पा, चमेली, कुन्द, जूही, मेलिसेरी, रक्तजवा (लाल उढउल ), मल्लिका (मोतिया), केतकी( केवडा) के पुष्प नही चढ़ाना चाहिए।
 
(९)  दो शंख, दो चक्रशिला(गोमती चक्र), दो शिवलिंग। ...., दो गणेश मूर्ति, दो सूर्य प्रतिमा और तीन दुर्गाजी की प्रतिमाओ का पूजन एक बार में नही करना चाहिए। इससे दुःख की प्राप्ति होती  है   
 
(१०) भगवन शंकर को आधी बार, विष्णु की चार बार, दुर्गा जी एक बार, सूर्य की सात बार तथा    गणेश जी की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। 
 
(११) शिव जी को भांग का भोग अवस्य लगाना चाहिए लोगो की यह धारणा है की शिव जी को लगाया गया भोग भक्षण नही करना चाहिए गलत है। केवल शिवलिंग को स्पर्श कराया गया भोग नही लेना चाहिए 

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Wednesday 7 January 2015

दो दिन मनाई जाएगी मकर संक्रांति

[15 जनवरी को सूर्योदय के पश्चात स्नान और दान पुण्य के लिए श्रेष्ठ ]
तिथि,काल,और सूर्य -पृथ्वी की गति के कारण इस बार मकर संक्रांति का महापर्व 15 जनवरी को मनाया जायेगा,मकर संक्रांति पर्व पर 83 साल बाद 15 जनवरी को उच्चस्थ बृहस्पति से तीन ग्रहो का समसप्तक योग भी बनेगा, उच्चस्थ बृहस्पति का समसप्तक योग अभागे 35 साल बाद मानेगा,मकर राशि में सूर्य,शुक्र और बुध के यो में उच्चस्थ बृहस्पति ये योग बनायेगा,हमारे ज्योतिषविदों के मुताबिक ये योग सरकारी योजनाओं में जनता को पूर्ण लाभ देनेवाल साबित होगा।

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मकर संक्रांति का पर्व इस बार दो दिन मानेगा। सरकार की और से तो  14 जनवरी को मकर संक्रांति का अवकाश घोसित किया गया है,जबकि मकर संक्राति का सर्वश्रेष्ठ पुण्यकाल 15 जनवरी को रहेगा,इस तरह पर्व 2 दिन मानेगा। सूर्य यु तो 14 जनवरी को शाम 07.28 मिनट पर   मकर राशि में प्रवेश कर जायेगा। शास्त्रो में संक्रांति काल से पहले के 6 घंटे 24 मिनिट और बाद के 16 घण्टे पुण्यकाल माना जाता है.पुण्यकाल 14 जनवरी को दोपहर 01. 04 मिनट से शुरू हो जायेगा। जो 15 को सुबह 11.28 बजे तक रहेगा।संक्रांति काल संध्या काल में  है। शास्त्रो में उदय काल में संक्रांति का पुण्यकाल श्रेष्ठ  माना गया है। इसी दिन दान पुण्य का महत्व माना गया है।

हर दो साल में अंतर --- साल 2016  में भी मकर संक्रांति 15 को ही मनेगी। फिर मकर संक्रांति मानाने का ये क्रम हर दो साल में बदलता रहेगा। लीप ईयर वर्ष आने के कारण मकर संक्रांति वर्ष 2017 2018 में वापस 14 को ही मकर संक्रांति मनाई जाएगी। साल 2019 -20 को 15 को मनेगी। ये क्रम 2030 तक युही चलेगा। इसके बाद 3 साल 15 तारीख को और एक साल 14 तारीख को मकर संक्रांति मनेगी। फिर 2080 के बाद से 15 तारीख को ही मकर संक्राति मनाया जाना शुरू हो जायेगा। 
इसलिए होता है ये-----पृथ्वी की गति प्रति वर्ष 50 विकला [ 5 विकला = 2 मिनट ] पीछे रह जाती है। वाही सूर्य संक्रमण आगे बढ़ता जाता है। हलाकि लीप ईयर में ये दोनों वापस उसी स्थिति में जाते है। इस बीच प्रत्येक चौथे वर्ष में सूर्य संक्रमण में 22 से 24 मिनट का अंतर जाता है। यह अंतर बढ़ते -बढ़ते 70 से 80 वर्ष में एक दिन हो जाता है। इस कारण मकर संक्रांति का पावन पर्व वर्ष 2080 से लगातार 15 जनवरी को ही मनाया जाने लगेगा    

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